Wednesday, April 14, 2010

सिमटी आंखे


*सिमटी आंखे*


सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
गेहरी सासों की वजह क्या हे?

बादल हे घिरके आये,
पर बूंदों का पता कहा हे|
बड़ी जोर से हैं आज हवाये,
या खुदा मेरा किनारा कहा हे?

देर रात तक यु करवट बदलना,
मेरे हिस्से की नींद कहा हे|
खुली आंखो से देखे थे जो सपने,
मौला,.. इन सपनो में रंग कहा हे|

सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
गेहरी सासों की वजह क्या हे?

बातो मैं कोई बात नहीं,
न बोलने की सजा क्या हे|
कुछ कहती हैं ये नज़्म,
इसे फिर से पढने की वजह क्या हे?

कुछ हरकत सी हे आंखो मैं,
इस हडबडाहट की वजह क्या हे|
तुम्हे छुने का नहीं हे हक़,
मेरी औकाद ही क्या हे?

सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
इस बेरुखी की वजह क्या हे?

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