Tuesday, February 22, 2011

कविता


कविता


सांगत सांगत, जरा थांबत थांबत
गेली भिडली आकाशा
तुला आडवनारा कोण, तुझ्या मनाशी ही कोण
गेली ओलांडूनी क्षितीजा

कधी सहज सहज, कधी विचार करत
लेखणीतूनी उतरे ह्या कागदा
कधी हसू होटातुन, कधी राग डोक्यामधे
दोन विचार मनी आणे माणसा

तुला लिहिणारा एक, तुला वाचणारा एक
तुला समजणारा कोणी सापडेना जगा
तुला छापे कागदातुन , तुला वीके पुस्तकातून
तुझा विचाराची किम्मत कोणी करवे कसा

तुझ्या शब्दात कळ, तुझ्या विचारत बळ
तुझा यमक भेडसी मणा
तुझा विचार निर्मळ, नाही हत्ती, हात ना कमळ
चार ओळींची ही झळ, तारसी जना


- पुरुषोत्तम शेटे

Monday, October 4, 2010

प्रेमाच्या परदयातली चिल्लर


-वाचकांच्या भावनांना गृहीत धरून ही कविता हटवन्यात आली आहे.

Friday, September 24, 2010

कौंग्रेस, कलमाड़ी और कॉमनवेल्थ। कोई बात नहीं


कौंग्रेस, कलमाड़ी और कॉमनवेल्थ

कोई बात नहीं

हम जो बदनाम हैं दिलबर तो कोई बात नहीं,
लोग करते हैं टर टर तो कोई बात नहीं।

उम्र भर हमे बाहर ही मजे करने हैं,
उम्र भर हमे बाहर ही मजे करने हैं,
लुट जाये जो वतन तो कोई बात नहीं।

हमने इस कॉमनवेल्थ में कमाया भी तो हैं,
हमने इस कॉमनवेल्थ में कमाया भी तो हैं,
दो, चार गिर गए जो पूल तो कोई बात नहीं।

घर घर जाके, विदेशियों के लिए सफाई करवाए मनमोहन,
घर घर जाके, विदेशियों के लिए सफाई करवाए मनमोहन,
गंद्दी पड़ी हैं जो गंगा तो कोई बात नहीं।

कलमाड़ी को करप्ट कह कर तो देखे कोई...
कलमाड़ी को करप्ट कह कर तो देखे कोई...
हा, करप्ट हो कलमाड़ी तो कोई बात नहीं।

एक रूपया दिहाड़ी मिलती हैं मजदुर को यहाँ,
एक रूपया दिहाड़ी मिलती हैं मजदुर को यहाँ,
कॉमनवेल्थ में हो ९ लाख की साइकिल, तो कोई बात नहीं।

कौन करे इनपे मुक़दमे, कौन करे इन्हें गिरफ्तार?
कौन करे इनपे मुक़दमे, कौन करे इन्हें गिरफ्तार?
कौंग्रेस का हाथ हो आम आदमी के साथ, तो कोई बात नहीं।

For apposition parties.

लक्ष्मी गैर के घर हो तो रपट लिखवा दू ,
लक्ष्मी गैर के घर हो तो रपट लिखवा दू ,
हा, चली आये मेरे घर तो कोई बात नहीं।


For आम आदमी।

करोडो के हैं घपले यहाँ, अरबो के हैं फ्रौड्स,
करोडो के हैं घपले यहाँ, अरबो के हैं फ्रौड्स,
बढ़ जाये जो क़ल TAX, तो कोई बात नहीं.


- पुरुषोत्तम शेटे
- With inspiration Inayat Ali Khan

Wednesday, September 8, 2010

आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?


आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?


आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?
अबोल असे ते पक्षी दोन।

एकला पंख आहेत, तर दुसऱ्याला नहीं।
एकात जिद्द, तर दुसऱ्यात नहीं।
आणि एक मेका शिवाय हे उडतच नहीं।

...

आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?
बेफाम वाहणारा वादल वारा।

वाहतो हा भन्नाट फार।
मणात आनेल तर जातो शितिजा पार।
पण वाहत्या वाऱ्याला वळवनार कोण ?
आणि आतल्या कोठडीत आहे तरी कोण ?

...


आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?
सुन्दर अशी ती स्वप्नातील राणी।

मनातली राणी आहे फार गोड
स्वप्नातल्या पाखरांना आहे तिची ओढ़
पण राणी चा राजा बनणार कोण?
आणि आतल्या कोठडीत आहे तरी कोण ?

...

आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?
दगडात कोरलेला देव।

देवाच्या पायाशी फुले हजार,
प्रत्येक नारलात स्वार्थाचा बाजार।
मनाच्या दगडाला भगवा फासनार कोण?
आणि आतल्या कोठडीत आहे तरी कोण ?

...


आतल्या कोठडीत राहतय कोण ?
मातीमोल पैसा।

कागदाला दिली माणसा आधिक किम्मत।
ह्या पैस्या पुढे आहे कोणाची हिम्मत।
उभ्या माणसाला विकणार कोण?
आणि पैश्या पेक्ष्या जास्त आहे तरी कोण?
...
आतल्या कोठडीत आहे तरी कोण ?
आतल्या कोठडीत आहे तरी कोण ?
...

Friday, August 27, 2010

What we need is just change in mentality ?




Audience for this Article: Software professionals.


Health is wealth...

All of us have read this line. We also agree its true, but we end up doing nothing for it.
As we all are software professionals, we don't do much of physical work. So we all believe that
we have to go to gym and do some exercise and take care of our health. Yes, all of us think about
it once in a month. Few of us act on it and join gym but due to our hectic work schedule, somehow
we were not able to follow the gym routine.

Most of us work with such hectic work schedules, we miss our lunch time, we miss our dinner time.
Most of the times we work late night. And most of us work on 50% of the weekends, Which leads us
to an imbalance in health as well as in personal and social life. Cause we don't have time for rest of the things except work.

I hope you all agree till now?

If yes...

Have we ever thought about it? Why is it so?

Why, we software professionals basically from india have such hetic work schedules?

Why your manager always takes it granted that you will work on weekends?

Why your family is not happy with you?

Only because your not able to give them time..


Let me tell you one short story.

For one project I went to US. there I worked with software professionals in US.
And one thing I noticed that these peoples work in very timely manner. Its not considered ethical to call any person on weekend for official work.

And these people have a law for it too.

In my trip I worked on almost all the weekends.

One moday morning, one of my co-workers asked
me "hey how was your weekend?

I said "Not good, I have been working on weekend".

Co-worker "Ohh shit, thats not gud".

Then i asked him "We called you on weekend for some critical issue, but you did not answer?"

Co-worker "Software professionals have critical issue every hour, but I also have a personal life"

Then he stated one line which I liked. He said "Worlds not gonna come to end if I don't work on a weekend"


Why cant we have such an attitude?

Is our company going to take care of the health problems that we will face in our later age, cause due to this work schedule?

How is the company going to compensate imbalance caused in our personal life?

What are we going to do with the heavy salaries payed to us by companies, if we are not happy mentally?

Why can't our software money makers have some rules for timely working? Or is it that they just care about money we s/w people make for them,
they don't give a fuck for our health?

Why can't we have any law on working hours?

Or what we need is just in change in mentality ?


Please post you comments to understand your view...

Monday, June 7, 2010

बादल ये बरसता क्यों


*बादल ये बरसता क्यों*

बादल ये बरसता क्यों,
दिल ये मेरा तरसता क्यों।
पल दो पल की बात हे ये,
पागल नहीं सम्हजता क्यों||

आसमा को हे ताकता क्यों,
बूंदों से झगड़ता क्यों,
नींद क्यों नहीं आये रत भर,
तस्वीर में तेरी तकता क्यों ||

समुन्दर पे हे बरसता तू,
क्यों उस दिल में नहीं गरजता तू|
छोड के मेरी चांदनी,
तेरी बूंदों में वो भीगे क्यों ||

लगे तू मुजहे रकीब सा,
मेरी दुश्मनी हे तुज्हसे क्यों|
जब छोटी छोटी बात पे लढ़ के,
तेरी बारिश में वो रोये क्यों||

क्यों प्यार करे वो बूंदों से,
ए बादल घिरके आये क्यों|
न समझ पाई वो मेरे बोल,
ए पागल उसे समझाए क्यों||

मुझे हे तेरी जरुरत आब,
आज खूब जोर से बरसना तू|
छुप जाये ए सरे आसू,
वो छोड के मुझको जाये क्यों||

Wednesday, April 14, 2010

सिमटी आंखे


*सिमटी आंखे*


सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
गेहरी सासों की वजह क्या हे?

बादल हे घिरके आये,
पर बूंदों का पता कहा हे|
बड़ी जोर से हैं आज हवाये,
या खुदा मेरा किनारा कहा हे?

देर रात तक यु करवट बदलना,
मेरे हिस्से की नींद कहा हे|
खुली आंखो से देखे थे जो सपने,
मौला,.. इन सपनो में रंग कहा हे|

सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
गेहरी सासों की वजह क्या हे?

बातो मैं कोई बात नहीं,
न बोलने की सजा क्या हे|
कुछ कहती हैं ये नज़्म,
इसे फिर से पढने की वजह क्या हे?

कुछ हरकत सी हे आंखो मैं,
इस हडबडाहट की वजह क्या हे|
तुम्हे छुने का नहीं हे हक़,
मेरी औकाद ही क्या हे?

सिमटी आंखो में छुपा क्या हे,
झुकी पलकों की रजा क्या हे|
क्यों हे ये उलफत, क्यों हे ये बेमानी,
इस बेरुखी की वजह क्या हे?

-.